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भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
पूर्व मध्य युग (भक्ति काल) में निःसंदेह निर्गुण और सगुण धाराओं के परस्पर भिन्न मत, विश्वास, विचार और मान्यताएँ थीं किन्तु इनमें कुछ प्रवृत्तियाँ ऐसी भी हैं जो दोनों में सामान्य रूप से पाई जाती हैं।
‘सन्त काव्य’, ‘प्रेम काव्य’, राम भक्ति शाखा तथा कृष्ण भक्ति साहित्य में गुरु महिमा का समान रूप से प्रतिपादन मिलता है।
भक्तिकाल का दायरा काफी विस्तृत है। इस काल में रचित भक्ति साहित्य की विविध प्रवृत्तियां देखने को मिलती है।
इस काल की प्रमुख प्रवृत्ति भक्ति के अलावा जो अन्य प्रवृतियां हैं- उनमें वीर काव्य, प्रबंधकाव्य, श्रृंगार, रीति-निरूपण आदि भी है।
- नाम का महत्व
- गुरु का महत्व
- भक्ति भावना की प्रधानता
- आडम्बर का विरोध
- समनवय की भावना
- अलौकिक साहित्य
- दरबारी साहित्य का त्याग
- काव्य रूप
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